फुटबाल
फुटबाल खेल का इतिहास
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रसार जब पूर्वी देशों की ओर हुआ तो उसके साथ फुटबाल भी पूर्वी देशों में गया। पिछली शताब्दी के पाँचवें दशक में फुटबाल भारत, म्यनमार और अन्य औपनिवेशिक बस्तियों में प्रचलित हुआ। यद्यपि फुटबाल भारतीय जमीन पर सबसे पहले 1840 में खेला गया, परन्तु इसे भारतीय लोगों ने गम्भीरता से सन् 1878 में ही अपनाया। पूर्वी जगत मे भारतीय फुटबाल संघ सबसे पुराना फुटबाल संघ गिना जाता है। जापान और चीन में फुटबाल इस शताब्दी के आरम्भ से खेली जा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय फुटबाल की सम्भावनाएँ सन् 1872 में प्रकट हुईं जबकि दो स्वतन्त्र राष्ट्रों के बीच प्रथम खेला गया। यह मैच इंग्लैंड और स्कॉटलैण्ड के मध्य ग्लासगो शहर में खेला गया था। इसके 25 वर्ष बाद सन् 1906 में फुटबाल को पहली बार एथेंस में आयोजित चौथे ओलिम्पिक खेलों में शामिल गिया गया। इसमें डेनमार्क ने पहला खिताब जीता था, इसके लगभग 25 वर्ष बाद 1930 में उरुग्वे ने प्रथम विश्व कप प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें 13 देशों ने हिस्सा लिया जिसमें केवल तीन देश यूरोपीय थे। आज फुटबाल को विश्व में सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल है। चाहे इस लोकप्रियता को दर्शक संख्या के संदर्भ में देखा जाए या खिलाड़ी संख्या के। दूसरे शब्दों में, फुटबाल के साम्राज्य में सूर्य कभी नहीं डूबता। इस खेल की दो मुख्य श्रेणियाँ हैं-व्यावसायिक तथा शौकिया। व्यावसायिक श्रेणी में फुटबाल धन कमाने के लिए खेला जाता है जबकि शौकिया श्रेणी में खेल मन बहलाव अथवा स्वास्थ्यवर्धन के लिए खेला जाता है। व्यावसायिक खिलाड़ियों के लिए 'विश्व कप' जैसी कई स्पर्धाएं हैं जबकि शौकिया फुटबाल के लिए ओलिम्पिक या एशियाई खेल जैसी प्रतियोगिताएँ हैं। की मूर्ति है, फैडरेशन इण्टरनेशनल द फुटबाल एसोसिएशन (FIFA) के प्रथम अध्यक्ष द्वारा प्रदान किया गया था। इस विश्व कप प्रतियोगिता के विजेता को ज्यूल्स रिमेट ट्रॉफी प्रदान की जाती है। इस ट्रॉफी को, जो कि एक स्वर्ण देवदूत प्रतियोगिता को इसलिए आरम्भ किया गया ताकि खेलों के द्वारा विश्व मैत्री, सद्भावना और सहयोग की भावना का प्रसार किया जा सके। वास्तव में फुटबाल का खेल पूर्ण गम्भीरता से तो यूरोपीय और दक्षिण अमरीकी देशों में हो खेला जाता है। एशियाई जी
अरब देश उनके खेल-स्तर के आस-पास शायद ही पहुंच पाए। हालांकि कुछ अरब देशों ने अपनी टीमों को प्रशिक्षित काले के लिए चोटी के प्रशिक्षकों की सेवाएँ खरीदी हैं। कुवैत, सऊदी अरब, इराक जैसे देश भी काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इन देशों का फुटबाल में तेजी से उबरने का रहस्य यह है कि इन देशों के खिलाड़ी मजबूत हैं और लम्बे समय तक तेज खेल खेलने की पर्याप्य क्षमता रखते हैं । एशिया खिलाड़ियों, जिनके पास खेल खेलने की कलात्मकता तो है, परन्तु दम-खभ नहीं। खेल की तुलना में इन अरब देशों के खिलाड़ी 60 मिनट तक बिना थके भिड़न्तपूर्ण खेल खेल सकते हैं। सन् 1900 में द्वितीय ओलिम्पिक खेल पेरिस (फ्रांस) में आयोजित किए गए। जनता के व्यापक आग्रह पर फुटबालक पेरिस ओलिम्पियाद में एक नये खेल के प्रदर्शन के तौर पर शामिल कर लिया गया। ग्रेट ब्रिटेन (अपटॉन पार्क नामक टीम ने प्रदर्शन मैच में फ्रांस को4-0 से हरा दिया। सन् 1904 में सेन्ट लुई के न्यू कॉण्टीनेण्ट नामक शहर में तृतीय ओलिम्पियाद आयोजित किया गया। इसमें भी फुटबाल के एक प्रदर्शन मैच को शामिल किया गया। इस प्रदर्शन मैच में कनाडा की प्रतिनिधित्व कर रही गाल्ट एफ० सी० नामक टीम ने संयुक्त राज्य अमरीका को 4-0 रौंदा। अन्ततः फुटबाल को ओलिम्पिक की खेल-सूची में आधिकारिक प्रवेश तब मिला जब 1608 का ओलिम्पियाद आयोजित करने का अधिकार लन्दन (ह्वाइट सिटी) को मिला। ओलिम्पिक नियमों के अनुसार किसी भी टीम को एक साथ लगातार तीन महीने से अधिक समय तक प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता। लेकिन समाजवादी देशों के अनुशासनबद्ध समाजों में खिलाड़ियों को अपना खेल कौशल संवारने के लिए नौकरियाँ दी जाती हैं। उनका मुख्य कार्य देश के लिए खेलना भर होता है।
विश्वकप
World Cup
प्रथम विश्व कप मुकाबले की मेजबानी करने के लिए पाँच देश उम्मीदवार थे-हॉलैण्ड, इटली, स्पेन, स्वीडन तमा
उरुग्वे । परन्तु सन् 1924 तथा 1925 के ओलिम्पियादों में फुटबाल के ओलिम्पिक खिताबों को जीतने वाले तथा कुल 27 लाख की आबादी वाले छोटे-से देश, उरुग्वे का प्रस्ताव असाधारण था। उरुग्वे का यह प्रस्ताव था कि यदि उसे मेजबाने का अधिकार मिल जाए तो वह सभी भ्रमणकारी टीमों के खाने-पीने, आने-जाने और रहने की व्यवस्था का खर्च उठाएग और इस मुकाबले के लिए एक नये स्टेडियम का निर्माण करेगा। इस साहसपूर्ण प्रस्ताव के मदे-नज़र बाकी चारों देशों ने अपनी उम्मीदवारी के दावे वापस ले लिए। सन् 1929 को बार्सीलोना में आयोजित फ़ीफा (FIFA) की कांग्रेस ने उरुग्वे को यह सम्मान दिया कि वह 1930 में मॉण्टेवीडियो नगर में पहली विश्व कप प्रतियोगिता आयोजित करें इस प्रकार ज्यूल्स
रिमेट ट्रॉफी का युग आरम्भ हुआ। विश्व कप प्रतियोगिता का आयोजन चार वर्षों में एक बार किया जाता है। ज्यूल्स रिमेट ट्रॉफी तो ब्राजील ने स्थायी कर से जीत ली, क्योंकि इस ट्रॉफी को उसने 1948, 1962, 1970 में तीन बार हथिआया था। सन् 1974 में विश्व कप ट्रॉफी का नाम "द फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप" रखा गया है। यह नयी ट्रॉफी भी 18 कैरेट सोने में ढली है उर इसका मूल्य एक लाख स्विस फ्रांक है
भारतीय फुटबाल
Indian Football
1863 से 1931 तक देश में इस खेल के विकास के लिए इण्डियन फुटबाल एसोसिएशन का, जिसका मुख्य
कोलकाता, बड़ा हाथ है। परन्तु फुटबाल के खेल का सारे देश में और प्रसिद्ध होने के कारण एक बड़ी कमेटी को बनाने के आवश्यकता पड़ी तो सारे देश के फुटबाल की बागडोर सम्भाले। यह बोर्ड आल इण्डिया फुटबाल फेडरेशन (All India Football Federation) के नाम से 1935 में दरभंगा में बनाया गया। इस बोर्ड का मुख्य कार्य 1941 में नेशनल चौम्पियनशिप का प्रारम्भ करना था जिसमें देश के 15 राज्यों की टीमें, जिनमें सेना और रेलवे की टीमें भी सम्मिलित थीं, प्रायके वर्ष भाग लेती थी। 1953 में प्रत्येक खिलाड़ी पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि वह फुटबाल के बूटों को बिना नहीं खेल सकता। इस प्रतिबन्ध के कारण फुटबाल खेल में काफ़ी उन्नति हुई। इसके साथ ही सभी टूनामेंटों के लिए खेल के मैदान के पैमाना भी एक समान मापी गई जो 115 गज लम्बी और 75 गज चौड़ी है। भारत में फुटबाल वैसे तो सभी जगह खेला जाता है, परन्तु कोलकाता में इसकी लोकप्रियता कल्पना से परे है। यह लोकप्रियता मुख्यतः तीन क्लबों के कारण है। ये क्लब है-मोहन बागान, ईस्ट बंगाल तथा मुहम्मडन स्पोटिंग।
ओलिम्पिक और भारतीय फुटबाल
Olympic And Indian Football
लन्दन शहर में सन् 1948 को आयोजित 14वाँ ओलिम्पियाद भारत के लिए अविस्मरणीय रहेगा, क्योंकि विश्व ओलिम्पिक खेलों में पहली बार किसी भारतीय फुटबाल टीम ने शिरकत की थी। यद्यपि भारत इस मुकाबले में ऊपर नहीं उठ सका और दुर्भाग्यवश प्रथम चक्र के मैच में ही फ्रांस, के हाथों में एक के मुकाबले में दो गोलों से परास्त हो गया। फिर भी भारतीय खिलाड़ियों ने आशा से अधिक अच्छे खेल का प्रदर्शन करते हुए इंगलिश दर्शकों पर अच्छा प्रभाव डाला तथा तुच्छ मूल्यवान् अनुभव भी बटोरे। इस शिरकत से भारतीय खिलाड़ियों का एक चिर संचित स्वप्न पूरा हुआ। उस समय भारतीय टीम 1-2-3-4 की परम्परागत क्षेत्र-सज्जा के साथ खेला करती थी। 15वां ओलिम्पियाद सन् 1952 में हेलसिकी नगर में आयोजित किया गया। इस ओलिम्पिक की फुटबाल प्रतियोगिता में भी भारत ने भाग लिया लेकिन उसका प्रदर्शन सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। यूगोस्लाविया ने एक के मुकाबले में दस गोल ठोंककर अपने विपक्षी भारत को चारों खाने चित्त कर दिया। नंग पाँव से भी भारतीय खिलाड़ी अच्छा खेले परन्तु विपक्ष उनके लिए बहुत भारी पड़ा। रोम ओलिम्पियाद के अनन्तर भारत ने टोक्यो (1964), मेक्सिको ( 1968) तथा म्यूनिख (1972) में अपनी टीम भेजन का प्रयास किया “फ़ीफ़ा एमेचेयर कमेटी के एक निर्णय के अनुसार ओलिम्पिक फुटबाल में खेलने के लिए एशियाई, आस्ट्रेलियाई देशों में चुनी जाने वाली तीन टीमों में स्थान पाने के लिए भारत को क्षेत्रीय और श्रेणीयन (Group) के आधार पर आयोजित प्राथमिक प्रतियोगिता में खेलना था। सन् 1964, 1972, 1976, 1980 के प्राथमिक मैचों में ओलिम्पिक में भाग लेने की योग्यता अर्जित करने में भारत असफल रहा। इसके अतिरिक्त एशियाई कप तथा सन 1967 व 1968 में मर्डेका कप के मुकाबलों में भारत का प्रदर्शन निम्न कोटि के होने के कारण भारतीय टीम ने सन् 1968 के मैक्सिको ओलिम्पिक
की फुटबाल स्पर्धा में भाग नहीं लिया।
एशियाई फुटबाल कप
(Asian Football Cup)
प्रथम एशियाई खेल भारत की राजधानी, नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में सन् 1951 को आयोजित किए गए जिसमें फुटबाल भी शामिल था। छ: देशों ने सीधे नॉक-आउट पद्धति के अनुसार इस खेल में हिस्सा लिया। भारत ने स्वर्ण पदक जीता, ईरान ने रजत और जापान ने कांस्य । दूसरा एशियाई फुटबाल टूर्नामेंट मनीला (फिलिपाइन्स) में सन् 1954 में आयोजित किया गया। इस स्पर्धा में 12 देशों ने हिस्सा लिया। इस मुकाबले में चीन गणतन्त्र (ताइवान) ने स्वर्ण पदक, दक्षिण कोरिया ने रजत पदक तथा म्यनमार ने हमारा राष्ट्रीय स्तर अच्छा नहीं है, परन्तु हमारा क्लब-स्तर काफ़ी ऊँचा है। इसका कारण यह है कि क्लबों में अच्छे- कांस्य पदक प्राप्त किया। अच्छे खिलाड़ी वर्ष भर साथ-साथ खेलते हैं और इससे उनके बीच एक ठास सूझ-बूझ और टीम भावना विकसित होती रहती हैं।
1. फुटबाल के मैदान का आकार- आयताकार
2. फुटबाल के मैदान की लम्बाई- 100 गज से 130 गज
3. फुटबाल के मैदान की चौड़ाई- 50 गज़ से 100 गज़
4. अंतर्राष्ट्रीय मैचों में मैदान का माप- अधिकतम 100 मी० x 75 मी० (120 गज़ x 80 गज़)
कम से कम 100 मी० x 64 मी० (100 गज़ x 70 गज़)
5. फुटबाल की परिधि- 27 इंच से 28 इंच
6. फुटबाल का भार- 14 औंस से 16 औंस (396 ग्रा से 453 ग्रा)
7. खिलाड़ियों की संख्या- 11 +9 = 20 खिलाड़ी
8. बदलवें खिलाड़ी-. 9
9. मैच का समय- 45-45 मिनट के दो अर्द्ध
10. मैच का मध्यान्तर- 10 मिनट
11. अधिकारी-. 1 रैफरी, 2 लाइनमैन, 1 टेबल अधिकारी
12. गोल पोस्ट की ऊँचाई- 2.44 मी०
13. कार्नर फ्लैग की ऊँचाई- 5
14. फुटबाल का भार- 410 से 450 ग्राम
गोल क्षेत्र (Goal Area)-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर रेखाएं खींची जाएंगी जो गोल रेखा पर लम्ब होंगो। ये
मैदान में 6 गज की दूरी तक फैली रहेंगी और गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा से मिला दी जाएंगी। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं द्वारा घिरे मध्य क्षेत्र को गोल क्षेत्र कहते हैं।
फुटबाल के नए नियम
(1) मैच दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्वारह- ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम के 20 खिलाड़ी होते हैं
जिनमें से 11 खेलते हैं और 9 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं। इनमें से एक गोलकीपर होता है।
(2) एक टीम मैच में तीन खिलाड़ी और एक गोलकीपर बदल सकती है।
(3) एक बदला हुआ खिलाड़ी दोबारा नहीं बदला जा सकता।
(4) खेल का समय 45-10-45 मिनट का होता है। मध्यान्तर का समय 5 मिनट का होता है।
(5) मध्यान्तर या अवकाश के बाद टीमें अपनी साइडें बदलती हैं।
(6) खेल का आरम्भ खिलाड़ी एक-दूसरे की सैंटर लाइन की निश्चित जगह से पास देकर शुरू करते हैं और साइडों
का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
(7) मैच खिलाने के लिए एक टेबल आफिसर, एक रैफरी और दो लाइन मैन होते हैं।
(8) गोलकीपर की वर्दी अपनी टीम से भिन्न होती है।
(9) खिलाड़ी को कोई ऐसी वस्तु नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे खिलाड़ियों के लिए घातक हो।
(10) मैदान के बाहरी भाग में से कोचिंग नहीं होनी चाहिए।
(11) जब गेंद गोल रेखा या साइड लाइन को पार कर जाए तो खेल रुक जाता है।
(12) रैफरी स्वयं भी किसी वजह से खेल बन्द कर सकता है।
फुटबाल का मैदान, गोल क्षेत्र, गोल, पैनल्टी क्षेत्र, कार्नर, रेखाएं और गेंद-:
खेल का मैदान (Playing Field) फुटबाल का मैदान आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 100 गज से कम और 130 गज़ से अधिक नहीं होगी। इसकी चौड़ाई 50 गज़ से कम और 100 गज से अधिक न होगी । अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में इसकी लम्बाई 110 गज से 120 गज तथा चौड़ाई 70 गज से 80 गज होगी।
रेखांकन (Lining)-खेल का मैदान स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित होना चाहिए। लम्बी रेखाएं स्पर्श रेखाएं या पक्ष
रेखाएं कहलाती हैं और छोटी रेखाओं को गोल रेखाएं कहा जाता है। मैदान के प्रत्येक कोने पर 5 फुट ऊँचे खम्बे पर झंडी (कार्नर फ्लैग) लगाई जाएगी। यह केन्द्रीय रेखा पर कम-से-कम एक गज पर होनी चाहिए। मैदान के मध्य में एक वृत्त लगाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास 10 गज़ होगा।
कार्नर क्षेत्र (Corner Area)-प्रत्येक कार्नर क्षेत्र पोस्ट खेल के क्षेत्र के अन्दर एक गज़ के अर्द्धव्यास का चौथाई
वृत्त खींचा जाएगा।
पैनल्टी क्षेत्र (Penalty Area)-खेल के मैदान दोनों सिरों पर प्रत्येक गोल पोस्ट से 18 गज की दूरी पर गोल रेखा
के समकोण पर दो रेखाएं खींची जाएगी। ये मैदान में 18 गज की दूरी तक फैली होंगी। इन्हें गोल रेखा के समान्तर एक रेखा खोच कर मिलाया जाएगा। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं से घिरे हुए क्षेत्र को पैनल्टी क्षेत्र कहा जाएगा।
गोल (Goal)-गोल रेखा के मध्य में से 8 गज या 24 फुट की दूरी पर दो पोल (डंडे) गाड़े जाएंगे। इनके सिरों को
एक क्रासबार द्वारा मिलाया जाएगा जिसका निचला सिरा भूमि से 8 फुट ऊँचा होगा। गोल पोस्टों तथा क्रासबार की चौड़ाई और गहराई 5 इंच से अधिक नहीं होगी।
गेंद (Ball)-गेंद का आकार गोल होगा। यह चमड़े या किसी अन्य स्वीकृत वस्तु की बनी होनी चाहिए इसकी परिधि 27° से 28° तक होगी। इसका भार 410 ग्राम से 450 ग्राम तक होगा। रैफरी की आज्ञा के बिना खेल के दौरान गेंद बदल नहीं जा सकती।
खिलाड़ी और उसकी पोशाक
खिलाड़ी का सामान (Dress of player)-खिलाड़ी प्राय: जर्सी या कमीज, निक्कर, जुराबें तथा बूट पहन सकता
है। गोल कीपर की कमीज़ या जर्सी का रंग बाकी खिलाड़ियों से भिन्न होगा। बूट पहनने आवश्यक हैं। कोई भी खिलाड़ी ऐसी वस्तु नहीं पहन सकता जो अन्य खिलाड़ियों के लिए हानिकारक हो।
फुटबाल खेल में ऑफ साइड, फ्री किक, पैनल्टी किक, कार्नर किक और गोल किक क्या होते हैं ?
ऑफसाइड (Off side)-कोई भी खिलाड़ी अपने मध्य में ऑफ साइड नहीं होता। ऑफ साइड उस समय
होता है जब वह विरोधी टीम के मध्य में हो और उसके पीछे दो विरोधी खिलाड़ी न हों।
(क) उसकी अपेक्षा विरोधी खिलाड़ी अपनी गोल रेखा के निकट न हों।
(ख) वह मैदान में अपने अर्द्ध-क्षेत्र में न हो।
(ग) गेंद अन्तिम बार विरोधी को न लगी हो या उसके द्वारा खेलो न गई हो।
(घ) उसे गोल-किक, कार्नर किक, श्रो-इन द्वारा गेंद सीधी न मिलो हो या रैफरी ने न फैंका हो ।
दण्ड (Penalty)-इस समय का उल्लंघन करने पर विरोधी खिलाड़ी को उस स्थान से फ्री किक दी जाएगी, जहां
पर नियम का उल्लंघन न हुआ हो।
फ्री किक (Free kick)-फ्री किक दो प्रकार की होती है। प्रत्यक्ष फ्री किक (Direct Kick) तथा अप्रत्यक्ष फ्री
किक (Indirect Kick)। प्रत्यक्ष फ्री किक वह है जो जहां से सीधा गोल किया जा सकता है। जब तक कि गेंद किसी और खिलाड़ी को न छू जाए।
फाऊल तथा त्रुटियां
(Fouls and Offence)
(क) यदि कोई खिलाड़ी निम्नलिखित अवज्ञा या अपराधों में से कोई भी जान-बूझ कर करता है तो विरोधी दल को अवज्ञा अथवा अपराध वाले स्थान से प्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।
(1) विरोधी खिलाड़ी को किक मारे या किक मारने की
कोशिश करे।
(2) विरोधी खिलाड़ी पर कूदे या धक्का या मुक्का मारे अथवा कोशिश करे।
(3) विरोधी खिलाड़ी पर भयंकर रूप से आक्रमण करे।
(4) विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से आक्रमण करे।
(5) विरोधी खिलाड़ी को पकड़े या उसके वस्त्र पकड़ कर खींचे।
(6) विरोधी खिलाड़ी को चोट लगाए या लगाने की कोशिश करे।
(7) विरोधी खिलाड़ी के रास्ते में बाधा बने वा टांगों के प्रयोग से उसे गिरा दे या गिराने की कोशिश करे ।
(8) विरोधी खिलाड़ी को हाथ या भुजा के किसी भाग से
(9) गेंद को हाथ से पकड़ता है।
यदि रक्षक टीम का खिलाड़ी इन अपराधों में से कोई एक अपराध पैनल्टी क्षेत्र में जान-बूझ कर करता है तो आक्रामक टीम को पैनल्टी किक दी जाएगी।
(ख) यदि निम्नलिखित अपराधों में से कोई एक अपराध करता है तो विरोधी टीम को अपराध वाले स्थान से अप्रत्यय फ्री किक दी जाएगी-
(1) जब गेंद को खतरनाक ढंग से खेलता है।
(2) जब गेंद कूछ दूर हो तो दूसरे खिलाड़ी को कन्धे मारे।
(3) गेंद खेलते समय विरोधी खिलाड़ी को जान-बूझ कर रोकता है।
(4) गोलकीपर पर आक्रमण करना, केवल उन स्थितियों को छोड़कर जब वह-
(1) विरोधी खिलाड़ी को रोक रहा हो। (1) गेंद पकड़ रहा हो। (ii) गोल क्षेत्र से बाहर निकल गया हो।
(5) (1) गोल रक्षक के रूप में गेंद भूमि पर बिना टप्पा मारे चार कदम आगे को जाना।
(ii) गोल रक्षक के रूप में ऐसी चालाको में लग जाना जिससे खेल में बाधा पड़े, समय नष्ट करे और अपने पक्ष के अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश करे।
(ii) खिलाड़ी को चेतावनी दी जाएगी और विरोधी टीम को अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जब कोई खिलाड़ी-
(a) खेल के नियमों का लगातार उल्लंघन करता है।
(b) दुर्व्यवहार का अपराधी होता है।
(c) शब्दों या प्रक्रिया द्वारा रैफरी के निर्णय से मतभेद प्रकट करता है।
(iv) खिलाड़ी को खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाएगा यदि-
(a) वह गाली-गलौच करता है या फाऊल करता है।
(b) चेतावनी मिलने पर भी बुरा व्यवहार करता है।
(c) वह गम्भीर फाऊल खेलता है या दुर्व्यवहार करता है।
फुटबाल खेल के मुख्य कौशल
1.किकिंग (Kicking)
टोअ किंक (Toe Kick), (i) इन साइड फुट किक (Inside Foot Kick), (ii) आऊट साइड फुट किक
(Outside Foot Kick), (iv) लोअ किक (Low Kick), (७) हाई किक (High Kick)
2. बाल कन्ट्रोल (Ball control)
3. ड्रिबलिंग (Dribbling)- दौड़ते हुए ड्रिबल करना (Dribble while running), (ii) पांव बदल का
डिबल करना (Joggler Dribble), (ii) चकमा देने के लिए ड्रिबल (Fexit Drible)।
4.टैकलिंग (Tackling)- सामने से टैकल करना (Front Tackling), (ii) पास से टैकल करना (Side way
Tackling), (iii) पीछे से टैकल करना (Back Tackling)।
5. बाल को रोकना (Trapping)
1) सोल ट्रैप (Sole trap), (i) पांव के अन्दर के भाग से ट्रैप करना (Inside foot trap), (iii) गिरती बाल को ट्रैप
करना (Front trap), (iv) पांव के बाहर से ट्रैप करना (Outside foot trap), (1) पट से दबाना (Thigh Traph
(vi) सोने से ट्रैप करना (Chest Trap), (vii) सिर से ट्रैप करना (Head Trap) |
फुटबाल की महत्त्वपूर्ण तकनीक
किकिंग (Kicking)-किकिंग वह ढंग है जिसके द्वारा बाल को इच्छित दिशा में पांवों की इच्छित गति से, यह देखते हुए कि बाल इच्छित स्थान पर पहुंच जाए. आगे बढ़ाया जाता है। किर्किंग की कला में सही निशाना, गति दिशा एवं अन्तर केवल एक पांव, बाएं या दाएं में नहीं बल्कि दोनों पांवों से काम किया जाता है। शायद सौसिखियों को सिखाई जाने वाली सबसे जरूरी बात दोनों पांवों से खेल को खेलने पर बल देने को उभरत है। युवकों और
नौसिखियों को दोनों पावों से खेलना सिखाना आसान है। इसके बगैर खेल के किसी सफलता के मरतवे पर पहुंच पाना
(1) पांवों को अंदरूनी भाग से किक मारना।
(2) पांवों का बाहरी भाग।
बाल को नजदीक दूरी पर किक किया जाता है तो इन दोनों परिवर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकत कम
गाई जाती है, परन्तु इस में अधिक शुद्धता होती है और नतीजे के तौर पर यह ढंग गोलों का निशाना बनाते समय अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
हॉफ बॉली तथा बॉली किक Half volley and Volley kick)-जब बाल खिलाड़ी के पास उछलता हुआ या
जब में आ रहा हो तो उस समय एक अस्थिरता होती है, न केवल फुटबाल के क्रीड़ा स्थल की सतह के कारण इसके उछलन की दिशा के बारे, बल्कि इसकी ऊंचाई और गति के बारे में भी इसको प्रभावशाली ढंग से साफ करने हेतु जो बात जरूरी है वह शुद्ध समय और मार रहे पांव के चलने का तालमेल और शुद्ध ऊंचाई तक उठाना।
ओवर हैड किक (Over Head kicky)-इस किक का उद्देश्य तीन पक्षीय होता है । (क) सामने मुकाबला कर रहे खिलाड़ी से बालको और दिशा में मोड़ना, (ख) बाल को किक की पहली दिशा में ही आगे बढ़ाना और (ग) बाल को वापिस उसी दिशा में मोड़ना जहां से वह आया होता है। ओवर हैड किक संशोधित बॉली किक है, पर इसका इस्तेमाल आमतौर पर ऊंचे उछलते हुए बाल को मारने हेतु किया जाता है।
पास देना (Passing)—फुटबाल में पास देने का काम टीम वर्क का आधार है। पास टीम को, समन्वय बढ़ाते हुए और टीम वर्क को अहसास कराते हुए जोड़ता है। पास खेल की स्थिति से जुड़ी हुई खेल की सच्चाई है तथा एक मौलिक तत्त्व है, जिसके लिए टीम की सिखलाई और अभ्यास के दौरान अधिक समय और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। गोलों में प्रवीणता के लिए टीम का पास व्यक्तिगत खिलाड़ी का शुद्ध आलाम है। यह कहा जाता है कि एक सफल पास तीन किकों से अच्छा होता है। पास देना तालमेल का एक अंग है, व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता को खेल में आक्रमण करते समय या सुरक्षा समय खिलाड़ियों में हिलडुल के पेचीदा ढांचे को एक सुर करना है। पास में पास देने वाला, बाल और पास हासिल करने वाला शामिल होते हैं। पास देने की क्रिया को आम तौर पर दो भागों में बांटा गया है-लम्बे पास तथा छोटे पास।
(क) लम्बे पास (Long Pass)-ऐसे पास का इस्तेमाल खेल की तेज़ गति की स्थिति में किया जाता है, जहां कि
लम्बे पास गुणकारी होते हैं और पास दाएं-बाएं या पीछे की ओर भी दिया जा सकता है। सभी लम्बे पासों में पांव के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। लम्बे सुरक्षा पास को मजबूत करते हैं तथा छोटे पास देने को आसान करते हैं।
(ख) छोटे पास (Short Pass)-छोटे पास 15 गज या इतनी-सी ही दूरी तक पास देने में इस्तेमाल किए जाते हैं।
ये पास लम्बे पासों से अधिक तेज़ एवं शुद्ध होते हैं।
पुश पास (Push Pass)—पुश पास का इस्तेमाल आमतौर पर जब दूसरी टीम का खिलाड़ी अधिक नज़दीक न हो, नज़दीक से गोलों में बाल डालने के लिए और बाल को बाएं दाएं ओर फेंकने हेतु किया जाता है-
लॉब पास (Lob Pass)—यह पुश पास से छोटा होता है। मगर इस में बाल को ऊपर उठाया जाता है या उछाला जाता है। लॉब पास का इस्तेमाल दूसरी टीम का खिलाड़ी जब पास में हो या थ्रो बाल लेने की कोशिश कर रहा हो, तो उसके सिर के ऊपर से बाल को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।
पांव का बाहरी भाग फ्लिक या जॉब पास (Job Pass)
पहले बताए गए दो पासों के विपरीत फ्लिक पास के पांव
को भीतर की ओर घुमाते हुए बाल को फ्लिक किया जाता है या पुश किया जाता है। इस तरह के पास का पीछे की ओर पास देने हेतु बाल को नियन्त्रण में रखते हुए और धरती पर ही आगे रेंगते हुए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रैपिंग (Trapping)-ट्रैपिंग बाल को नियन्त्रण में रखने का आधार है। बाल को ट्रैप करने का अर्थ बाल को खिलाई
के नियन्त्रण से बाहर जाने से रोकना है। यह केवल बाल को रोकने या गतिहीन करने की ही क्रिया नहीं बल्कि आ रहे बाल को मजबूत नियन्त्रण में करने के लिए अनिवार्य तकनीक भी है। रोकना तो बाल नियन्त्रण का पहला अंग है और दूसरा अंग जो खिलाड़ी इसके उपरान्त अपने एवं टीम के लाभ हेतु करता है, भी बराबर अनिवार्य है।
नोट-ट्रैप की सिखलाई (क) रेंगते बाल तथा (ख) उछलते बाल के लिए दी जानी चाहिए।
पांव के निचले भाग से ट्रेप (Trapp from the lower side of foot)-यदि कोई शीघ्रता नहीं होती और जिस
वक्त काफ़ी स्वतन्त्र अंग होता है खिलाड़ी के आस-पास कोई नहीं होता तो इस तरह की ट्रैपिंग बहुत गुणकारी होती हैं
पांव के भीतरी भाग से ट्रैप (Trapp from inside of
foot)—यह सबसे प्रभावशाली और आम इस्तेमाल किया
जाता ट्रैप है। इस तरह का ट्रैप न केवल खिलाड़ी को बाल ट्रैप करने के योग्य बनाता है, बल्कि उसको किसी भी दिशा में जाने के लिए सहायता करता है और अक्सर उसी गति में ही। यह ट्रैप दाएं-बाएं से या तिरछे आ रहे बाल के लिए अच्छा है। यदि बाल सीधा सामने से आ रहा है तो बदन को उसी दिशा में घुमाया जाता है जिस ओर बाल ने जाना होता है।
पांव के बाहरी भाग से ट्रैप (Trapp from outside of foot)—यह पहले जैसा ही है, मगर कठिन है, क्योंकि
पेट तथा सीना ट्रैप (Trapp from chest)—यदि बाल कमर से ऊंचा हो और पांव से असरदार ढंग से ट्रैप न हो
हैड ट्रैप (Head trap)—यह अनुभवी खिलाड़ियों के लिए है, और उनके लिए है जो हैडिंग में अपने को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं।
(क) सामने की ओर हैडिंग (Front Heading)
(ख) बाएँ तथा दाएँ ओर हैडिंग (Left and right side Heading)
(ग) नीचे की ओर हैडिंग (Heading Towards down)
फुटबाल खेल के अर्जुन अवार्ड विजेताओं के नाम
(Arjuna Awardee)
1. पी० के० बैनर्जी 2. टी० बलराम, 3. यूसफ खान, 4. एस० नीयमुद्दीन, 5. एस-हबीब, 6. पीटर थगारिया, 7. जरनैल सिंह, 8. इन्द्र सिंह, 9. अरुणा घोष, 10. चूनी लाल, 11. गुरदेव सिंह, 12. शाम थापा, 13. सुधीर, 14. सगनसिंह, 15. एस० महाचारीए, 16. श्री प्रसाद सिंह, 17 शान्ति महिक।
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