importance of yoga in hindi [ योग का महत्त्व ]

 योग का महत्त्व विस्तार से:-(importance of yoga) 

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भारतीय विद्वानों ने आत्मबल द्वारा “योग विज्ञान के सम्बन्ध में जानकारी दी है तथा इसमें बताया है कि
मनुष्य का शरीर तथा मन अलग-अलग हैं। यह दोनों ही मनुष्य को अलग-अलग दिशाओं में आकर्षित करते हैं जिसके कारण मनुष्य की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास रुक जाता है। शरीर तथा मन को एकाग्र करके परमात्मा से मिलने का मार्ग बताया गया है जिसे योग की सहायता से जाना जा सकता है। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द युज से हुई है, जिससे अभिप्राय है ‘जोड़ अथवा मेल। इस प्रकार शरीर तथा मन के सुमेल को योग कहते हैं। योग वह क्रिया अथवा साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है।
योग का महत्त्व (Importance of Yoga)
योग विज्ञान का मनुष्य के जीवन के लिए बहुत महत्त्व है। योग केवल भारत का ही नहीं बल्कि संसार का प्राचीन
ज्ञान है। देश-विदेशों के डॉक्टरों तथा शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों ने इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। योग से शरीर
तथा मन स्वस्थ रहता है तथा इसके साथ-साथ शरीर की नाड़ियां लचकदार एवं मज़बूत रहती हैं। योग शरीर को रोगों मज़बूत से दूर रखता है और यदि कोई बीमारी लग भी जाए तो उसे आसन अथवा किसी अन्य योग क्रिया द्वारा दूर किया जा योग हमें उस दुनिया में ले जाता है जहाँ जीवन है, स्वास्थ्य है, परम सुख है, मन की शान्ति है। योग ज्ञान की ऐसी गंगा है जिसकी एक-एक बूंद में अनेक रोगों को समाप्त करने की क्षमता है। योग परमात्मा से मिलन का सर्वोत्तम साधन है। शरीर आत्मा और परमात्मा के मिलन का माध्यम है। स्वस्थ शरीर के द्वारा ही परमात्मा के दर्शन किये जा सकते हैं। योग
को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाने के साथ-साथ सुयोग्य एवं गुणवान् भी बनाता है। यह हमारे शरीर में शक्ति पैदा
मरता है। योग केवल रोगी व्यक्ति के लिए ही लाभदायक नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य भी इसके अभ्यास से लाभ उठा सकते हैं। योग प्रत्येक आयु के व्यक्तियों के लिए लाभदायक है। योग का अभ्यास करने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से कार्य करने लगते हैं। योग अभ्यास द्वारा मांसपेशियां होती हैं तथा मानसिक सन्तुलन में वृद्धि होती है। योग की आवश्यकता आधुनिक युग में उतनी ही है जितनी प्राचीन युग में थी। हमारे देश से कहीं अधिक विदेशों ने इस क्षेत्र में प्रगति की है। उन देशों में मानसिक शान्ति के लिए इसका अत्यधिक प्रचार होता है साथ ही उन देशों में योग के क्षेत्र में बहुत विद्वान् हैं। यह विचारधारा भी गलत है कि आजकल के लोग योग करने के योग्य नहीं रहे। आज के युग में भी मनुष्य योग से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है। योग-विज्ञान व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास में इस प्रकार योगदान देता है-
1. मनुष्य की शारीरिक और मानसिक आधारभूत शक्तियों का विकास (Development of Physical,
Mental and Latent Powers of Man)
योग-ज्ञान द्वारा मनुष्य निरोग रह कर दीर्घ-आयु का आनन्द प्राप्त करता है। योग नियम और आसन व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायक होते हैं। विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के विभिन्न अंग क्रियाशील होते हैं। इनसे उनका विकास होता है। इसके अतिरिक्त यह शरीर की विभिन्न प्रणालियों जैसे-पाचन प्रणाली, श्वास प्रणाली और मांसपेशी प्रणाली के ऊपर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता है। प्राणायाम और अष्टांग
योग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों (Latent Powers) का विकास होता है।
2. शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Cleanliness of Body)
योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण
विकास (All Round Development) होता है। आसनों से जहाँ शरीर स्वस्थ होता है वहां योगाभ्यास द्वारा मन
नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान का आपसी तालमेल भी बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर चुस्ततथा स्वस्थ रहता है। प्रत्याहार द्वारा दृढ़ता में वृद्धि होती है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इसी तरह ध्यान, समाधि, यम और नियमों की भान्ति षटकर्म भी आन्तरिक सफाई में सहायक होते हैं। षटकर्मों में धोती, नेती, बस्ती, त्राटक, नौली से कपालभाति, जिगर और आन्तों
की सफाई होती है आत्मा का परमात्मा से मेल कराने में शरीर माध्यम है और षटकर्मों, आसनों तथा प्राणायाम इत्यादि क्रियाओं से शरीर
की आन्तरिक सफाई के लिए योग सहायता करता है।
3. शारीरिक अंगों में शक्ति एवं लचक का विकास करना (Development of Strength and Elasticity)-
प्रायः देखने में आता है कि यौगिक क्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की सेहत उन व्यक्तियों से बेहतर होती है जो
योग क्रियाओं में रुचि नहीं रखते। योग द्वारा मनुष्य का केवल शारीरिक विकास ही नहीं होता बल्कि आसनों द्वारा जोड़ और हड्डियों का विकास भी होता है। खून का प्रवाह तेज़ हो जाता है। धनुर आसन तथा हल-आसन रीढ़ की हड्डी में लचक पैदा करते हैं जिससे मानव शीघ्र बूढ़ा नहीं होता। इस प्रकार योग क्रियाओं द्वारा शरीर में शक्ति तथा लचक
4.भावात्मक विकास (Emotional Development)–आधुनिक मानव मानसिक और आत्मिक शान्ति की
इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि हम अपनी भावनाओं के प्रवाह में बह कर कभी तो उदासी की गहरी खाई हमें इतना दुखी कर देती है कि संसार की कोई भी वस्तु हमें अच्छी नहीं लगती। हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई डूब जाते हैं और कभी खुशी के मारे पागलों जैसे हो जाते हैं। एक साधारण सी असफलता अथवा दुःखदायी घटना पैदा होती है। Final i hope u like my article yoga



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