SOCIOLOGICAL ASPECTS OF PHYSICAL EDUCATION


        शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

 शारीरिक शिक्षा से क्या अभिप्राय है ?
शारीरिक शिक्षा वह है जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से, व्यक्तियों में एक चुनी हुई
दिशा में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।
शारीरिक शिक्षा का समाजीकरण की प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
शारीरिक शिक्षा समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति किसी भी खेल में खेल के नियमों का
पालन करते हुए तथा अपनी टीम के हित को सामने रखते हुए भाग लेता है। वह अपनी टीम को पूरा सहयोग देता है। वह हार-जीत को समान समझता है। उसमें सहनशीलता का गुण विकसित होता है इतना ही नहीं, प्रत्येक पीढ़ी कुछ- न-कुछ खास परम्पराएं भावी पीढ़ी के लिए छोड़ जाती है। जिससे विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा के माध्यम से परिचित करवाया जाता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के समाजीकरण में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
खेल समाजशास्त्र हमारी किस प्रकार से सहायता करता है ?
(1) यह नेतृत्व के गुणों की प्राप्ति में सहायता करता है।
(2) यह नैतिक व मूल्यपरक गुणों को विकसित करता है।
(3) इससे समाजीकरण में सहायता मिलती है।
शारीरिक शिक्षा के मुख्य सिद्धान्त- 
(1) सामाजिक सिद्धान्त 
(2) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त 
(3) जैविक सिद्धान्त।
खेलों के द्वारा सामाजिकता का महत्त्व
1. व्यक्तित्व की पुष्टि (Affirmative to Identity)-यह पारस्परिक आश्रय एवं स्वतन्त्र व्यवहार का
विकास करता है अर्थात् समाज में रहते हुए कैसे अपना व्यक्तित्व बनाया जाए।
2. आत्मविश्वास (Confidence)—यह स्व: आत्मविश्वास का विकास करता है एवं क्षेत्र में वास्तविक स्थिति का
सामना करने के उत्साह का विकास करता है।
3. सामाजिक नियन्त्रण (Social Control)-खेलें एवं क्रीड़ाएं सामाजिक आश्रय के रूप में काम करती हैं
जैसे यह इकट्टे काम करने के लिए सामाजिक व्यवहार का नियन्त्रण करता है। यह समाज की चिन्ताओं से भी स्वतन्त्र करता है 
4. भावात्मक स्वतन्त्रता (Emotional Release)-यह खेल के दौरान भावनाओं का सरल निकासतारे।
5. भाईचारा (Brotherhood) -यह भाईचारे, टीम की आत्मा, एकत्रीकरण, मित्रता एवं संयोजन के प्रोत्साहित करता है।
6. परिवर्तनशील प्रतिनिधि (Changing Agent) यह जाति, धर्म के बन्धनों को समाप्त करता है एवं जी
दर्जा उपस्थित करता है। यह समाज की बुरी रीतियों एवं परम्पराओं को समाप्त करने के अवसर देता है।
7. नायकत्व विकास (Leadership Development)-खेल एवं क्रीड़ाएं हमें नायकत्व गुण का विकासका
के लिए उच्च अवसर प्रदान करती हैं।
8. धन्धा (Job)-खेलें व क्रीड़ाएं हमें सामाजिक दर्जे के साथ पहचान देती हैं एवं विभिन्न कामों के अवसर
प्रदान करती हैं।
9. स्वस्थ वातावरण (Healthy Environment)—यह नीरोगता एवं स्वास्थ्य में सुधार करके स्वस्थ वाताका
के प्रति सामाजिक चेतना लाती है।
10. चरित्र निर्माण (Character Building)-नैतिक एवं सामाजिक चरित्र खेलों एवं क्रीड़ाओं के द्वारा होता है।
11. गुणों में सुधार (Qualities Improve)-अनुश
के, नियमितता के, समय की पाबन्दी एवं जिम्मेदारी के
विचार खेलों एवं क्रीड़ाओं के द्वारा सीखे जाते हैं।
12. प्रशासनिक विचार (Administrative Idea)-खेलों एवं क्रीड़ाओं के द्वारा कोई भी प्रशासनिक न
प्रबन्धक गुणों का विकास करता है।
13. सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage)-ये गुण हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत का बचाव करने में
मदद करते हैं। ये हमारी बुरी परम्पराओं एवं सिद्धान्तों में सुधार भी लाती हैं।
14. सम्पूर्ण व्यक्तित्व (The Overall Personality)-सम्पूर्ण व्यक्तित्व का सुधार खेलों एवं क्रीड़ाओं के द्वारा
होता है। इस तरह हम समाज के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में सुधार करके सामाजिकता का विकास करते हैं।
15. खेल कूद द्वारा संस्कृति का विकास-हमारा खेल-कूद का इतिहास पृथ्वी पर मानव जीवन के इतिहास
जितना ही पुराना है। संस्कृति ही है जो मनुष्य को पशुओं से अलग करती है। संस्कृति मनुष्य के समूह में रहन-सहन के ढंग, विचार द्वारा जीवन विधि से संबंधित मानी जाती है। संस्कृति व्यक्ति की बड़ी धरोहर है। गतिविधि ही खेल का दूसरा रूप है। धरती पर मनुष्य के पैदा होने पर वह कई प्रकार की गतिविधियां करता ही आया है। शिकार करना भाले का प्रयोग आदि खेल थे। धीरे-धीरे विचार बढ़ते गए और नाच गाना भी खेल-कूद का भाग बन गया। इससे प्रेरित होकर यूनान ने ओलिम्पिक खेलें आरम्भ की। आधुनिक ओलिम्पिक विश्व स्तर पर आयोजित होने लगे है। जर्मन, इंग्लैंड, अमेरिका देशों में जिमनास्टिक, बालगेम्स, वॉलीबाल, बेसबाल और बास्केट बाल आदि खेलों को बढ़ावा दिया।
शारीरिक शिक्षा के लिए प्रशिक्षण संस्थाए
शारीरिक शिक्षा में शैक्षिक एवं कौशल योग्यता को उन्नत करने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाएं हैं। शारीरिक
शिक्षा को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए किसी को योग्यताएं एवं कोसों की आवश्यकता है जैसे बी० पी०ई०
(शारीरिक शिक्षा में स्नातक) 3 वर्षीय स्नातकता एवं एक वर्षीय स्नातकोत्तर) डिप्लोमा, एम० पी०ई०  (शारीरिक शिक्षा में निपुण अथवा स्नातकोत्तर); एम० एस० सी० (क्रीड़ा विज्ञान में निपुण), एन० आई० एस० (खेलों
में राष्ट्रीय संस्था) 1 वर्षीय डिप्लोमा, किसी विशिष्ट खेल में 3 महीने का इत्यादि। शारीरिक शिक्षा के लिए काफ़ी संख्या में नेतृत्व प्रशिक्षण संस्थाएं हैं, लेकिन उनमें से महत्त्वपूर्ण हैं-
 (1) एल० एन० आई० पी० ई० (शारीरिक शिक्षा की लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय संस्था) ग्वालियर एवं त्रिवेन्द्रम में।
(2) एन० एस० एन० आई० एस० (क्रीड़ा की नेताजी सुभाष राष्ट्रीय संस्था) पटियाला, कलकत्ता (कोलकाता),
 बैंगलोर एवं गांधी नगर में।
 (3) वाई० एम० सी० ए० (युवा क्रिश्चियन संस्था) चेन्नई में।
(4) अमरावती में हनुमान व्यायामशाला।
(5) शारीरिक शिक्षा में कोर्स उपलब्ध करवाने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा के विभाग हैं
जैसे-पी० यू० (पंजाब विश्वविद्यालय) चण्डीगढ़, जी० एन० डी० यू० (गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर),
यू० (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) एच० पी० यू० (शिमला), डी० यू० (दिल्ली एवं अन्य कई)।
 शारीरिक शिक्षा का समाजीकरण की क्रिया पर प्रभाव 
1.आपसी मेल-मिलाप (Co-ordination)-खेल-कूद द्वारा आपसी सहयोग उत्पन्न किया जा सकता है। खेलों
में खिलाड़ी एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और उनमें सहयोग और सूझ-बूझ से एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बना लेते हैं और मेल-मिलाप की भावना से काम करते हैं। उनकी इस तरह की प्रतिक्रिया खिलाड़ियों में तालमेल की भावना उत्पन्न करती है जो उनको समाजीकरण का मार्ग प्रदान करती है ताकि खिलाड़ी समाज के हितकारी सदस्य बन सकें।
 2. व्यवहार में परिवर्तन (Change of Behaviour)-खेलें खिलाड़ियों के व्यवहार में परिवर्तन कर देती हैं। ये
खिलाड़ियों में छुपी हुई पशुता या नकारात्मक प्रवृत्तियों को निकाल कर उसके स्थान पर आज्ञा का पालन करना,
अनुशासन में रहना आदि गुण विकसित करके उसके व्यवहार को बदल देती हैं। खेलों द्वारा व्यवहार में आए परिवर्तन का प्रभाव अत्यधिक लम्बे समय तक रहता है।
3. समय का महत्त्व (Respect of Time)-कोई भी मनुष्य समाज का उस समय तक सदस्य नहीं बन सकता
जब तक उसमें समय के अनुसार कार्य करने की आदत न हो। ये खेल-कूद खिलाड़ियों को समय के पाबन्द और समय से काम करने के गुणों से सुसज्जित करके उसे किसी टीम या समुदाय का एक अच्छा सदस्य बनाने के लिए सहायक होती है। जो मनुष्य अपने समय के अनुसार कार्य करने की आदत, इन खेलों से प्राप्त करते हैं, वे इन गुणों को समाज में भी ले जाकर उसका समाजीकरण करते हैं।
4. त्याग की भावना (Sense of Sacrifice)-खेलें खिलाड़ियों में त्याग की भावना विकसित करती हैं। खिलाड़ी अपने दु:खों को भूलकर अपनी टीम या समूह के लिए त्याग करने को हमेशा तत्पर रहते हैं। जिस मनुष्य में दूसरों के लिए त्याग की भावना होती है वह दूसरों के दुःख-दर्द का अच्छा साथी बन सकता है।
 5. सामूहिक ज़िम्मेदारी (Group Responsibility) खेलों में बहुत-सी क्रियाएं हैं जिनके द्वारा खिलाड़ी
आपसी मेल-जोल से काम करता है। वह सफलता या असफलता को देखे बिना अपनी सामर्थ्य से अधिक प्रयास करते हैं। यह इन खिलाड़ियों के समाजीकरण की तरफ झुकाव के कारण से ही होता है। 
 शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों द्वारा राष्ट्रीय एकता तथा विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास होता है।'
 भारत एक विशाल एवं विभिन्नताओं से भरपूर देश हैं। यहां अनेक धर्मों और जातियों के लोग निवास करते
हैं। उनकी संस्कृतियों और भाषाओं में भी विभिन्नता एवं विविधता के दर्शन होते हैं। इतना ही नहीं, भारत में भौगोलिक विविधता भी देखने को मिलती है। यहां पर जहां एक ओर हिमालय पर्वत के उच्च शिखर हैं, वहां दूसरी ओर विशाल हिन्द महासागर। एक ओर गंगा-सिन्ध का विशाल उपजाऊ मैदान है तो दूसरी ओर दक्षिण का पठार। इन विभिन्नताओं के होते हुए भी सभी भारतीय एकता की लड़ी में पिरोए हुए हैं। इस विविधता में भी एक अनूठा निरालापन है। इतिहास साक्षी है कि अनेक विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की एकता को छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता न मिली। भारत के लोगों ने भाषा, धर्म, जाति आदि के आधार पर स्वयं को शोषण से बचाए रखने का भरपूर प्रयास किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने धर्म-निरपेक्षता का मार्ग अपनाया तथा बिना किसी भेदभाव
के धर्म, व्यवसाय तथा विचार की स्वतन्त्रता प्रदान की। राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने वाली राष्ट्रीय नीतियों को अपनाया गया। बड़े दुःख की बात है कि निजी हितों से प्रेरित शक्तियां धर्म, भाषा आदि के नाम से परस्पर टकराती रहती हैं। इन विवादों एवं झगड़ों ने राष्ट्रीय एकता तथा प्रजातन्त्र के मार्ग में कई बाधाएं प्रस्तुत की हैं। इन बाधाओं को दूर करने के लिए विभिन्न संस्थाएं, रैलियों, युवा उत्सवों (Youth Festivals) तथा खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करती रहती हैं। आज यह बात सिद्ध हो चुकी है कि शारीरिक शिक्षा तथा खेल-कूद राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने तथा सामाजिक गुणों को विकसित करने का सर्वोत्तम साधन है। संसार के सभी देश इस बात को स्वीकार करते हैं कि शारीरिक शिक्षा के प्रभावशाली कार्यक्रम के माध्यम से लोगों में देश के प्रति प्रेम में अभिवृद्धि की जा सकती है। खेलों के द्वारा सद्भावना एवं सहयोग जैसे गुण विकसित किए जा सकते हैं। इसकी भावना से प्रेरित होकर यूनानियों ने ओलिम्पिक खेलों का शुभारम्भ किया। इसी विश्वास को फ्रांस के बेरन डी कुबर्टिन (Baron de Cubertin) ने आगे बढ़ाया जिसके फलस्वरूप 1896 ई० में आधुनिक ओलिम्पिक खेलों
का जन्म हुआ। इन खेलों ने राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीयता की विस्तृत भावना को जन्म दिया। आज इन खेलों के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय एकता तथा सद्भावना को विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। खेलों में खिलाड़ी बिना किसी बाहरी दबाव के सभी रंग, जाति, नस्ल आदि के भेदभाव भुला कर मिलजुल कर भाग लेते हैं। ऐसा वातावरण उनके हृदय पर सहयोग, मैत्री तथा सद्भावना की छाप अंकित करता है। इन गुणों का विकास खेलों के माध्यम से होता है जो राष्ट्र के लिए गुणकारी सिद्ध होता है। खेलों के माध्यम से व्यक्ति एक-दूसरे के समीप आते हैं। इस प्रकार उनमें परस्पर विचारों का आदान-प्रदान होता है। उन्हें एक दूसरे की भाषा, रहन सहन का ढंग तथा आपसी समस्याओं को सुलझाने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस प्रकार खेलें मैत्री भावना को विकसित करती हैं और कई बार मैत्री रिश्ते-नाते का रूप धारण कर लेती हैं। खेलों का प्रसार इसी विश्वास पर किया जाता है कि इससे आपसी सद्भावना तथा एकता को प्रोत्साहन मिलता है तथा अनेक समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। खेल प्रतियोगिताएं विभिन्न प्रान्तों के खिलाड़ियों को एक ही राष्ट्रीय मंच पर ला खड़ा करती हैं। इन्हें आयोजित करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि प्रति वर्ष विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन एक ही प्रान्त में न किया
जाए ताकि प्रत्येक प्रान्त के लोगों को इन्हें जानने का अवसर मिले। इस प्रकार से एकता की भावना का विकास होता है तथा विभिन्नता में एकता स्थापित करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम राष्ट्रीय एकीकरण की भावना विकसित करने के महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
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