History of yoga [ योग इतिहास ]

                               Yoga [importance of yoga ]
योग का अर्थ(Yoga)
योग शब्द की उत्पत्ति-संस्कृत भाषा के शब्द युज से हुई है, जिससे अभिप्राय है जोड़ अथवा मेल।
इस प्रकार शरीर तथा मन के सुमेल को योग कहते हैं। योग वह क्रिया अथवा साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है। 
योग का लक्ष्य (Aim of Yoga)—योग का मुख्य लक्ष्य शरीर को स्वस्थ, लचकदार, जोशीला एवं चुस्त
रखना तथा महान् शक्तियों (Great Powers) का विकास करके मन पर विजय प्राप्त करना है जिससे आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सके। आत्मा को परमात्मा में विलीन करके आवागमन अर्थात् जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा प्राप्त करना ही वास्तव में मोक्ष (Moksha) अथवा मुक्ति है। शारीरिक शिक्षा से योग के केवल दो साधन-आसन (Asanas) और प्राणायाम (Pranayama) सम्बन्ध रखते हैं। योग विज्ञान द्वारा मनुष्य शारीरिक रूप में स्वस्थ, मानसिक रूप में दृढ़, चेतन तथा व्यवहार में अनुशासनबद्ध रहता हुआ मन पर विजय प्राप्त करके परमात्मा में लीन हो जाता है।
योग की परिभाषा और उसका इतिहास(Yoga)
भारतीय विद्वानों ने आत्मबल द्वारा योग विज्ञान के सम्बन्ध में जानकारी दी है तथा इसमें बताया है कि
मनुष्य का शरीर तथा मन अलग-अलग हैं। यह दोनों ही मनुष्य को अलग-अलग दिशाओं में आकर्षित करते हैं जिसके कारण मनुष्य की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास रुक जाता है। शरीर तथा मन को एकाग्र करके परमात्मा से मिलने का मार्ग बताया गया है जिसे योग की सहायता से जाना जा सकता है। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द युज से हुई है, जिससे अभिप्राय है जोड़ अथवा मेल। इस प्रकार शरीर तथा मन के सुमेल को योग कहते हैं। योग वह क्रिया अथवा साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है। 
(Yoga)इतिहास (History)-योग शब्द काफ़ी समय से प्रचलित है। गीता में भी योग के बारे में लिखा हुआ मिलता है। रामायण तथा महाभारत युग में भी इस शब्द का काफ़ी प्रयोग हुआ है। इन पवित्र ग्रन्थों में योग द्वारा मोक्ष (Moksha) की प्राप्ति करने के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक लिखा हुआ मिलता है। इन विद्वानों में से प्रसिद्ध पतंजलि का नाम प्रमुख पतंजलि ऋषि के अनुसार, “मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।
है। इसने योग के सम्बन्ध में काफ़ी विस्तार में लिखा परन्तु योग के सम्बन्ध में सभी विद्वानों का एक मत नहीं है। गीता में भगवान् कृष्ण जी लिखते हैं, कि सही ढंग से काम करने का नाम ही योग है। डॉक्टर सम्पूर्णानन्द (Dr. Sampurnanand) के अनुसार, योग आध्यात्मिक कामधेनु है जिससे जो मांगो, वही मिलता है।
श्री व्यास जी (Sh. Vyas Ji) ने लिखा है कि योग का अर्थ समाधि है। पीछे दी गई विचारधारणाओं से पता चलता है कि, योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना है। मानवीय शरीर स्वस्थ तथा मन शुद्ध होने से उसका परमात्मा से मेल हो जाता है। योग द्वारा शरीर स्वस्थ रहता है तथा मन एकाग्रता में वृद्धि होती है। इससे परमात्मा से मिलाप आसान हो जाता है। योग विज्ञान द्वारा मनुष्य का मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक रूप से सम्पूर्ण विकास होता है। इस प्रकार आत्मा का परमात्मा से मेल ही योग है। इस मधुर मिलन का माध्यम शरीर है। स्वस्थ तथा शक्तिशाली शरीर के बल पर ही आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है तथा उस सर्वशक्तिमान प्रभु के दर्शन हो सकते हैं। योग शरीर को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाता है। इसीलिए ही आत्मा का परमात्मा में विलीन होने का यह एक मात्र साधन है। परमात्मा अलौकिक, गुण, कर्म एवं विद्या युक्त है। यह आकाश में समान व्यापक है। प्राणी तथा परमात्मा का आपस में सम्बन्ध होना अति आवश्यक है। योग इन सम्बन्धों को मजबूत बनाने में सहायक होता है। मनुष्य का उद्देश्य-संसार के सभी सुखों को प्राप्त करते हुए अन्त में जीवात्मा का परमात्मा में विलीन होना है ताकि आवागमन के चक्करों से मुक्ति प्राप्त की जा सके। पतंजलि ऋषि द्वारा दी गई आठ अवस्थाएं 
योगाभ्यास की पतंजलि ऋषि द्वारा आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। इन्हें पतंजलि ऋषि का अष्टांग योग भी
कहते हैं-(Yoga)
1. यम(Yama, Forbearance)
2. नियम  (Niyama, Observance)
3. आसन (Asana, Posture)
4. प्राणायाम (Pranayama, Regulation of breathing)
5. प्रत्याहार (Pratyahara, Abstraction) 
6. धारना (Dharana, Concentration)
7. ध्यान (Dhyana, Meditation)
8. समाधि (Samadhi, Trance)
योग की ऊपर बताई गई आठ अवस्थाओं में से पहली पांच अवस्थाओं का सम्बन्ध आन्तरिक यौगिक क्रियाओं से है।  


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Him
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May 27, 2020 at 8:57 PM delete

very nice
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