बास्केटबॉल
BASKET BALL
बास्केटबाल का इतिहास।
बास्केटबॉल एक उत्तेजनापूर्ण खेल है तथा इसका मूल स्थान अमेरिका है। इसका आविष्कार अन्तर्राष्ट्रीय
YMCA के निर्देशक डॉ० स्मिथ ने सन् 1981 में स्प्रिंगफील्ड मैसाच्यूट्स में किया था। इसके नियम बाद में संशोधित
(Revised) किए गए जिनके अन्तर्गत गोल (Goal) को कोर्ट (Court) के ठीक बाहर रखा गया। शारीरिक सम्पर्क (Body Contact) को स्वीकृति नहीं दी गई तथा गेंद के साथ साथ दौड़ने को फाऊल घोषित कर दिया गया। अनुभवहीन खिलाड़ियों को खेल में शामिल करने के प्रयोजन से खेल को अधिक सरल बनाया गया। डॉ० स्मिथ ने खेल क्षेत्र के दोनों ओर दो बॉक्स एक-एक निश्चित ऊँचाई पर टांग दिए तथा खिलाड़ियों को स्कोर के लिए गेंद उन बॉक्सों में फेंकनी पड़ती थी। तब गेंद के बॉक्स में आने की समस्या थी इसलिए 'ऑक्स' के स्थान पर आज की तरह गोल प्रयोग किए गए। इस प्रकार
यह खेल अमेरिका में शुरू हुआ तथा इसके नियमों को सन् 1934 में मानक रूप दिया गया। आरम्भ में एक टीम में लगभग 40-50 खिलाड़ी होते थे और बास्केटबाल जिम्नेजियम में खेला जाता था। 22 जनवरी, 1982 में प्रथम बार इस खेल की टीम में पांच खिलाड़ी निश्चित किए गए। 1982 ओलिम्पिक खेलों में बास्केटबाल को ओलिम्पिक खेलों को शामिल करने की कोशिश की गई परन्तु 1936 बर्लिन ओलिम्पिक खेलों में बास्केटबाल शामिल की जा सकी जिसमें 21 देशों ने इस खेल में भाग लिया। 1932 में अन्तर्राष्ट्रीय बास्केटबाल संघ की स्थापना की गई। उसी समय से बास्केटबाल में अमेरिका का प्रभुत्व रहा है। भारतवर्ष में YMCA मद्रास को बास्केटबाल को प्रफुल्लित करने का श्रेय जाता है। पंजाब में यह खेल
बास्केटबॉल के नए नियम
(New Rules of Basket Ball)
1. बास्केटबॉल खेल में रबड़ का बाल प्रयोग किया जाता है।
2. खेल के दूसरे हाफ में टीम को तीन टाइम आउट दिए जा सकते हैं जबकि पहले दो हाफ में दो टाइम आउट होते हैं।
3. बास्केटबाल के पोल अन्तिम रेखा से दो मीटर पीछे होने आवश्यक हैं।
4. अब अन्तिम रेखा से थ्रो-इन की जा सकती है।
5. अब 24 सैकिंड नियम 30 सैकिंड की जगह लागू होता है।
6. खेल के कुल चार हाफ होते हैं। 10-2-10-10, 10-2-10 मिनट ।
खेल मैदान एवं खेल से सम्बन्धित उपकरणों का विशिष्ट वर्णन
महत्त्वपूर्ण टूर्नामेंट्स
(Important Tournaments)
1. ओलिम्पिक खेल
2. एशिया खेल
3. राष्ट्रीय बास्केटबाल चैम्पियनशिप
4. विलियम टोड़ मैमोरियल ट्रॉफी
5. प्रिस वकालत झा ट्रॉफी
6. अखिल भारतीय राम मेमोरियल ट्रॉफी
7. फैडरेशन कप।
बास्केटबॉल के मूल कौशल
(Fundamental Skills of Basket Ball)
1. बाल पकड़ना (Handling the ball)
2. पासिंग (Passing)(1) चैस्ट अथवा पुश पास (Chest or Push Pass), (E) अंडर हैंड पास (Under Hand
Pass), (ii) ओवर हैंड पास (Over Hand Pass), (iv) टू हँडिड बाऊंस पास (Two handed Bounce Pass), (v)
हुक पास (Hook Pass)।
3. पिवटिंग (Pivoting)
4. डिबल (Dribble) हाई ड्रिबल (High Dribble), (ii) लो ड्रिबल (Low Dribble)|
5. शूटिंग (Shooting)- टू हैंड सैट शॉट (Two Hand Set Shet), (ii) ले अप शॉट (Lay Up Shot),
(iii) हुट शॉट (Hook Shot), (iv) जम्प शॉट (Jump Shot)
6.रीबाऊंडिंग (Rebounding)
7. बचाव (Defence)
8. चकमा देना (Dodge)-(1) संकेत से चकमा देना (Dexdge by Hint), (ii) रफ्तार से चकमा देना (Dodge by Hint), (iii) रफ्तार से चकमा देना (Dodge by Speed), (iv) बचाव से चकमा (Dodge by Escape) |
10. आक्रामक योजनाएं (Offensive Strategies)-(1) चकमा (Faking), (ii) स्क्रीनिंग (Screening),
(ii) दो-तीन का हमला (Attacking by two-three), (iv) त्रिकोण हमला (Attack by three sides), (v) स्तम्भ चक्र हमला (Free Circular Attack), (vi) क्षेत्र हमला (Zonal Attack)|
11. रक्षा योजना (Defensive Strategy)-1) ब्लाकिंग (Blocking), (ii) टैकलिंग (Tackling), (iii) रक्षा क्षेत्र
(Zonal Defence), (iv) गाडिंग (Guarding)।
12. स्कोरिंग (Scoring)-तीन अंक (तब मिलते हैं अगर तीन नम्बर अंक से दूर हों) दो अंक (ऊपर हो या फ्री श्रो
क्षेत्र में), एक अंक (फ्री थ्रो के बाद)।
पासिंग (Passing)-बॉस्केटबॉल के खिलाड़ी को उन सभी प्रकार के पास (Passes) देने में निपुण होना चाहिए जिनका प्रयोग गेंद को अपने साथी को देने के लिए विपक्षी खिलाड़ी के ऊपर से, नीचे से अथवा उसके पास से फेंका जाता है।
पास देने के लिए आवश्यक बातें
(1) पास देने से पहले सामने देखने की आदत बनाओ।
(2) पास प्राप्त करने वाले साथी की दूरी का अनुमान लगाना तथा साथ ही यह अनुमान भी लगाना कि कितने समय में गेंद उसके पास पहुंचाए गा
(3) पास करने से पहले विपक्षी खिलाड़ी की स्थिति का अनुमान लगाना।
(4) "पास" सही तथा शीघ्र होना चाहिए।
दो हाथ का छाती वाला या पुश पास
(Two Handed Chest Pass or Push Pass)
बॉस्केटबॉल में यह सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला पास है। कम या मध्यम दूरियों के लिए इस पास का प्रयोग
होता है तथा इसमें कलाई द्वारा अतिरिक्त शक्ति लगाई जाती है। गेंद को छाती की ऊंचाई पर लाना चाहिए ताकि इसे सरलता से प्राप्त (Catch) किया जा सके। पास देने के लिए गेंद को छाती के सामने दोनों हाथों में पकड़ा आता है, कोहनियां काफ़ी दूर होती हैं ताकि गति में अवरोध न हो। इस स्थिति में खिलाड़ी गेंद को पास, शूट या स्टार्ट (Pass, shoot or start) कर सकता है। भुजाओं को फैला कर तथा हथेली को पास की दिशा में घुमाकर गेंद को शक्ति के साथ आगे की ओर धकेलना चाहिए।
दो हाथ का बाउन्स पास (Two handed Bounce Pass)-यह पास भी लगभग "Chest Pass" की तरह
ही है। इसमें गेंद को ठीक पहले की ही तरह फैंका जाता है किन्तु इसे जमीन की तरफ प्राप्तकर्ता खिलाड़ी के यथासम्भव निकट फैंकते हैं ताकि वह गेंद को घुटनों तथा कमर के बीच किसी ऊंचाई पर प्राप्त करके ले। “बाउन्स पास" का प्रयोग छोटी दूरियों के लिए किया जाता है। बाउन्स पास देने के लिए गेंद को अपनी छाती या कमर की ऊंचाई पर दोनों हाथों में पकड़े कोहनियों को सीधा करें तथा हथेली से शक्ति के साथ गेंद को जमीन की तरफ इस प्रकार फैंको कि विपक्षी के पास से होकर जैसे ही गेंद जमीन को छुए, वह उछल कर प्राप्तकर्ता के हाथ में गिरे।
दो हाथों का अण्डर हैंड पास
(Two Handed Under Hand Pass)
इसे शौवल पास (Shoval Pass) भी कहते हैं। यह तब प्रयोग किया जाता है जब खिलाड़ी (Passer) अपने साथी खिलाड़ी के निकट ही हो। गेंद शीघ्र देने के लिए यह एक छोटा पास है। यह पास देने के लिए कोहनियों को बाहर की तरफ मोड़ते हुए दाएं या बाएं तरफ़ से दोनों हाथों का प्रयोग करो। दाई साइड के पास के लिए बायां तथा बाई साइड के पास के लिए तुम्हे धाया पैर आगे को धकेलना चाहिए
बसे बॉल पास
(Base Ball Pass)
यह पास बहुत प्रभावशाली है। इसका प्रयोग गेंद को पिवट खिलाड़ी (Pivot Player) को देने अथवा लम्बा पास देने के लिए होता है। सुविधा के अनुसार दायां या बायां हाथ प्रयोग किया जा सकता है। पास को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए गेंद को अपने कन्धों के ऊपर तथा दाएं कान के निकट रखो। अब गेंद को पूरी शक्ति के साथ आगे फैको। इस पूरी क्रिया में तुम्हारा दायां हाथ पीछे रहना चाहिए। इस पास में देखने की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गेंद को कलाई (नकि बाजूओं) की मदद से कितनी शक्ति से धकेला जाता है।
टू हैण्ड साइड पास (Two Handed Side Pass)
सिवाय हाथों को स्थिति के, यह पास "बेस बॉल पास" की तरह ही है। इसमें हाथों को गेंद के दोनों तरफ फैलाना
चाहिए। इसे हुक के दाएं या बाएं किसी तरफ से भी खेला जा सकता है।
बैक पास (Back Pass)
अपने असुरक्षित साथी (Unguarded) को गेंद देने के लिए यह सर्वोत्तम पास है। इसमें गेंद को पीछे से, कलाई
से तथा उंगलियों की मदद से पास किया जाता है। क्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कूल्हों (Hips) को थोड़ा
हिलाया जा सकता है। किसी भी हाथ से यह पास प्रभावशाली ढंग से दिया जा सकता है।
एक हाथ का बाऊन्स पास
(One Handed Bounce Pass)
यह दाएं या बाएं हाथ से दिया जाता है। इसका प्रयोग दो स्थितियों में किया जाता है।
(A) जब "गार्ड" खिलाड़ी (Guard Player) पासर खिलाड़ी (Passer Player) को बहुत निकट से गार्ड कर
रहा है।
बास्केट बाल की तकनीक
1. गेंद को कैच करना और पकड़ना-गेंद को रखना इतना महत्त्वपूर्ण है कि बॉल लेना और पकड़ना पास देने जितना ही आवश्यक है। पास को किस प्रकार फेंका गया है, इसे ध्यान में न रखते हुए खिलाड़ी को कैच लेना चाहिए। बॉल मुड़ने से रोकने के लिए खिलाड़ी प्रत्येक पास की ओर कट करें। उद्देश्य के लिए हाथों को शरीर के आगे लाना चाहिए जिससे गेंद लेने के किसी भी दिशा में जब बढ़ाना होना है, तब संतुलन बना रहता है। ऐसा भी सम्भव है कि एक हाथ ऊपर उठाया जाए जिससे पास के लिए अच्छा अवसर मिल सकें। गेंद को अंगुलियों के गद्दों से पकड़ना चाहिए और ड्रिबलिंग, पास अथवा शूटिंग से पहले शरीर को बचाने के लिए अपनी ओर लाना चाहिए। यदि खिलाड़ी कुछ देर के लिए बॉल को पकड़ना चाहे तो वह बचाव करने वाले खिलाड़ी से दूर बॉल को पीछे लाते हुए फ्री पांव से थोड़ा पीछे लाते हुए। इससे उसका शरीर
2. डिब्बलिंग-बॉल को आगे बढ़ाने के लिए ड्रिब्बलिंग पास के मुकाबले में धीमी होती है। इसलिए इसका अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। डिब्बलिंग को दूसरी टीम को बेधने अथवा बास्केट की ओर जाने के लिए प्रयोग करना चाहिए। एक बढ़िया पासिंग लेन बनाएं, फिर भीड़ से बाहर आएं और ड्रिबलिंग को नीचे कोर्ट पर लाएं। एक याद रखने योग्य नियम यह है कि यदि पास दिया जा सकता है तो गेंद को ड्रिब्बल न करें। हाथों को कप बना कर अंगुलियों दिशा को नियन्त्रित करें, जब कि कलाई और अंगुलियों की लचक से ताकत प्राप्त होगी। गेंद थोड़ा नीचे और कुछ आगे को शरीर थोड़ा मुड़ी हुई स्थिति में होना चाहिए। सामने वाली बाजू और आगे वाला पांव गेंद और विरोधी खिलाड़ी के मध्य सुरक्षा प्रदान करें। मूलत: ड्रिव्यल दो प्रकार के होते हैं, जोकि पहचान से वापिस आती गेंद की ऊंचाई को नाप कर अपना बचाव करने वाले खिलाड़ी की दूरी से होती है। यह ऊंची ओर नीची डिब्बलिंग होती है
तेज गति की ड्रिबल- तेज गति की ड्रिबल का प्रीयोोग
तब किया जाता है जब असुरक्षित हो और तेजी
के साथ आगे बढ़ता हुआ बिना विपक्षी खिलाड़ी का सामना किए गेंद को कोर्ट पर नीचे रखे बास्केट की ओर बढ़ता है । थोड़ा सा शरीर को आगे झुकाए सीधा रहता है। गेंद कमर और छाती के बीच ही वापस आती है। डिब्बल करने वाली बाजू गेंद को लम्बे डग (कदम) भरते हुए खिलाड़ी अपनी क्षमता के अनुसार गेंद पर नियन्त्रण करता है।
(ii) कम नियन्त्रण वाली डिब्बल—यह ड्रिब्बल तब प्रयोग की जाती है जब खिलाड़ी पूरी तरह से सुरक्षित हो अपना किसी सघन क्षेत्र में हो। शरीर और गेंद दोनों को नीचे की ओर रखना चाहिए। गेंद को घुटनों तक उछाल कर अथवा थोड़ा गद्दों और नीचे एवं शरीर के पास ड्रिब्बल करने वाली साइड पर ही रखना चाहिए। दवाव की स्थिति में गेंद को दिशा परिवर्तन के लिए अधिक बार स्पर्श करने का अवसर मिलता है।
3. एक हाथ से शॉट मारना-यह शॉट अधिकतर लम्बी शॉट के लिए और जब फ्री-श्री को शूट करना हो तब एक
से मारी जाती है। पाँव को शूट करने वाली हाथ के नीचे थोड़ा आगे को रख कर दोनों पाँवों को आगे-पीछे रखें। घुटने, टखने और कमर थोड़ा झुकी हुई हो। भार दोनों पांवों पर समान हो और कन्धे बास्केट की ओर मुड़े हों। गेंद को दुड्डी के नीचे रखें अथवा माथे से ऊपर। यहां ध्यान रखें कि गेंद जितनी ऊपर होगी विपक्ष को शॉट रोकने का उतना ही कम अवसर मलेगा। गेंद को अंगुलियों से पकड़ें न कि हथेलियों से। शूट करने वाला हाथ पीछे की ओर और थोड़ा सा गेंद के नीचे जयकि अंगुलियां खुली और कलाई ऊपर को निकली हुई। दूसरा हाथ अथवा दिशा देने वाला हाथ एक तरफ और थोड़ा गेंद के नीचे जबकि अंगुलियां खुली हों। शॉट लगाते समय टांगों को आगे बढ़ाएं जबकि शूट करने वाली बाजू आगे बास्केट की और हो। कलाई आगे को ढीली छोड़ें जब दूसरा हाथ गेंद से दूर हटे । कलाई की ढील गेंद को छोड़ती है जब अंगुलियों के सिरे बाद में दूर होते हैं जिससे गेंद थोड़ा पीछे को घूमती है। दूसरा हाथ पूर्णत: ऊपर की ओर रहना चाहिए, जबकि शूट करने वाली हथेली नोचे फर्श की ओर हो।
जम्प शॉट-जम्प शॉट अपनी ऊंचाई के कारण एक बहुत ही प्रभावशाली और आक्रामक हथियार है। गेंद पर हाथों की आरम्भिक स्थिति एक हाथ की शॉट जैसी ही है। दोनों पांवों के उछाल के साथ शूटर ऊपर हवा में जम्प करता है। गेंद माथे से ऊपर लाई जाती है। जम्प की पूर्ण ऊंचाई पर शरीर लगभग स्थिर और संतुलित स्थिति में हो । नजर को बास्केट पर रखते हुए शूट करने वाली बाजू को पीछे रखते हुए बॉल को उसी हाथ से एक हाथ से लगाने वाली शॉट जैसे ही मारें। खिलाड़ी सन्तुलित अवस्था में नीचे को आए। जबकि जम्प शॉट के लिए ताकत आरम्भ में बाजुओं और कलाइयों से मिलती है, सैट शॉट के मुकाबले इस शॉट की दूरी सीमित होती है जिससे टांग और बाजू की मजबूती समाविष्ट हो जाती है।
(1) ले-अप शॉट-कम दूरी के कारण इस शॉट को अधिक बार प्रयोग किया जाता है, जब खिलाड़ी बास्केट के पास
से पास ले लेता है अथवा गोल के पास डिफैंस के पास से मारता है। बास्केट की ओर तिरछे ढंग से इसे बढ़िया तरीके से मारा जाता है, जब बैक बोर्ड को गेंद डालने के लिए प्रयोग किया जाता है। अन्तिम ड्रिब्बल पर बॉल को दोनों हाथों की अंगुलियों से पकड़ कर सिर के ऊपर रखा जाता है। उसी समय बाल को शूट करने वाले हाथ में सैट करें और बायां हाथ दूर नीचे को जाए।
4. टीम डिफेंस अथवा जोन डिफेंस-अच्छे शॉटों को अधिकतम सुरक्षा प्रदान करने के लिए डिफेंस बास्केट के
भीतर और आस-पास इस प्रकार के डिफेंस को बचाव करने वाले खिलाड़ियों को तैनात करके किया जाता है। खिलाड़ियों का गठजोड़ मजबूत होता है। गठजोड़ खिलाड़ियों की गति, आकार, क्षमता को और साथ ही कोर्ट पर तय करने वाले क्षेत्र को ध्यान में रखकर किया जाता है। अधिक प्रयोग होने वाली ये डिफेंस होते हैं-1-3-1, 1-2-2, 3-2, 2-1-2,23 जोन एक प्रकार का डिफेंस होता है।
5. खिलाड़ी से खिलाड़ी का डिफेंस-खिलाड़ी से खिलाड़ी डिफेंस में प्रत्येक खिलाड़ी को प्रत्येक विरोधी खिलाड़ी पर नजर रखने के लिए तैनात किया जाता है जिससे जोन डिफेंस का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सुरक्षित हो जाता है। गेंद की स्थिति विम्के अनुसार सभी खिलाड़ियों के स्थानान्तर की अपेक्षा प्रत्येक खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी पर डिफेंसिव कोर्ट पर नजर रखे क्योंकि आक्रामक खिलाड़ी की ओर से स्कोर बना लेने का भय होता है, तो रक्षात्मक खिलाड़ी को टीम अपने विशेष कौशल, सहनशक्ति से उसे स्वीकार करती है।
6. वापसी-एक प्रभावशाली वापसी के लिए ढंग-स्थिति बनाना, आक्रमण और जम्प करने का समय महत्त्वपूर्ण होते हैं। वापसी के लिए स्थिति को 'ब्लॉकिंग आऊट' अथवा 'बाक्सिंग आऊट' कहा जाता है। डिफेंसिव खिलाड़ी के लिए बास्केट के पहले से ही पास होने से एक विशेष लाभ रहता है। पूर्वानुमान और तेज रफ्तार से एक आक्रामक खिलाड़ी अपनी स्थिति अंदर को बना लेता है। ब्लाकिंग आऊट में अपने आपको केन्द्रित करके बास्केट की ओर मुंह करने के लिए विरोधी को अपने पीछे रखा जाता है।
(B) जब गतिशील प्राप्तकर्ता खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड किया जा रहा हो। इस “पास'' की तकनीक स्थिति के साथ बदलती रहती है। पहली स्थिति में पास को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे शीघ्रता से तथा अकस्मात् (Suddenness and surprise) किया जाता है। इसकी साधारण विधि में इसे शुरू करके
आवश्यकतानुसार किसी भी साइड में शीघ्रता से हट जाना होता है। ठीक उसी समय गार्ड खिलाड़ी से बचने के लिए बाजू को कदम की दिशा में बढ़ा कर गेंद प्राप्तकर्ता की तरफ आवश्यकतानुसार स्विंग (Swing) के साथ उछाल दिया जाता है। दूसरे प्रकार का "एक हाथ वाला पास" तब आवश्यक होता है जब दौड़ता हुआ प्राप्तकर्ता (Receiver) खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड हो रहा हो। इस स्थिति में "गार्ड" द्वारा इसी प्रकार का सीधा पुश पास प्रयोग करना सम्भावित है। इस पास (Pass) को फेंकने के लिए गेंद को थोड़ा-सा कन्धों के ऊपर कानों के पास रखा जाता है। इसके बाद बाजू को आगे तथा नीचे की तरफ़ इस तरह फैलाया जाता है कि गेंद को सामने स्विंग किया जा सके परन्तु गेंद "गार्ड" (जो प्राप्तकर्ता को कवर किए हैं) की पहुंच के बाहर होनी चाहिए।
फ्लिप पास (Flip Pass)
"फ्लिप पास" का प्रयोग गेंद को निकट से "पास" के लिए किया जाता है। यह आवश्यकतानुसार दोनों हाथों से
या एक हाथ से किया जा सकता है। थोड़ी दूरी पर खड़े खिलाड़ी को गेंद फ्लिप करने के लिए झुकी हुई कलाई
(Flexed Wrist) का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह एक छोटा "पास' है गेंद को केवल कलाई द्वारा ही "फ्लिप"
किया जाता है ताकि गेंद को केवल इतना बल ही मिले कि प्राप्तकर्ता इसे सरलता से तथा निश्चित रूप से दबोच
इसके। क्योंकि दूरी कम होती है इसलिए प्रतिपक्षी खिलाड़ी इसे रोक नहीं सकता तथा प्राप्तकर्ता इसे सरलता से पकड़ लेता है।
एक हाथ का साइड पास (One Handed Side Pass)
जब अधिक शुद्धता (Accuracy) तथा गति (Speed) की आवश्यकता न हो तो उस स्थिति में यह 'पास' प्रयोग
किया जाता है। इस पास की तकनीक इस प्रकार हैगेंद को अपने हाथों में पकड़ो, हाथों की उंगलियां अच्छी तरह फैली हुई हों ताकि पूरे गेंद को ढक सकें। अपने शरीर
को थोड़ा-सा घुमाते हुए गेंद को दाएं कान के पास ले जाओ। कोहनियों को खोलते हुए तथा उसी समय बाएं पैर को आगे बढ़ाओ। कोहनी को नीचे की तरफ खोलते हुए दाएं हाथ से गेंद को आगे की ओर फैंको। विश्राम सहित। (Relaxed) शरीर तथा कलाई द्वारा इसका पीछा करो। पास देते समय बाई भुजा, दाई भुजा की मदद करती है। परन्तु बाई कोहनी छाती की ऊंचाई पर मुड़ी रहती है।
टिप अर्थात् वॉली पास (Tip or Volley Pass)
किसी दिशा में भी कदम लेकर फ्रन्ट लाइन की स्थिति से यह पास दिया जा सकता है। गेंद पकड़ते समय एक हाथ गेंद के नीचे तथा दूसरा उसकी मदद करते हुए गेंद को उंगलियों के सिरे से या कलाई द्वारा फ्लिप करके थोड़ी दूर पर खड़े अपने साथी खिलाड़ी को लुढ़का दिया जाता है।
वार्म-अप के विशिष्ट व्यायाम (Specific Exercises of Warm up)-सिखलाई व मुकाबले से पहले वार्म अप
जरूरी क्रिया है सबसे पहले वार्म-अप में आम व्यायाम करने चाहिए। उसके बाद विशिष्ट व्यायाम जैसे, आगे-पीछे दौड़ना, डिब्बलिंग करना पार्किग से अप शॉट दोनों हाथों के शॉट लगाना जम्प, शॉट लगाना, डाजिंग करना, ब्लाकिंग व पिवटिंग आदि।
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